Dr. Kumar Vishwas Ji ka naam bharat ke main kaviyon mein aata hai, jitni sundar unki Surat hai utni hi sundar unki seerat hai, kumar ji ki kavitayen itni zyada acchi hai agar aap ek baar sunne ja fir padhne baith jao toh fir aap kumar ji ke diwane ho jaoge.kumar vishwas ji ki kavitayen soun ka ya padh kar inhye bar bar gungunane ko mn karta hai.
Kumar Vishwas |
Table Of Content
- कुमार विश्वास से जुडी कुछ बाते
- कुमार विश्वास का जन्म
- करियर
- पुरस्कार
- Kumar Vishwas Shayari
- kumar vishwas poems
- kumar vishwas poetry
- kumar vishwas ki kavita
- dr kumar vishwas
- kumar vishwas twitter
- kavita kumar vishwas
- kumar vishwas wife
- kumar vishwas kavi sammelan
- कुमार विश्वास की कविता
- कुमार विश्वास की कविताएं
- कुमार विश्वास शायरी हिंदी
- डॉ कुमार विश्वास
- कुमार विश्वास की प्रेमिका का नाम
- कुमार विश्वास की गजलें
- Final Words
कुमार विश्वास से जुडी कुछ बाते
कुमार विश्वास का जन्म उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ियाबाद के पिलखुआ में 10 फरवरी (वसन्त पंचमी), 1970 में हुआ. इनके पिता जी का नाम डॉ॰ चन्द्रपाल शर्मा और इनकी माता जी का नाम श्रीमती रमा शर्मा हैं. कुमार विश्वास चार भाईयों और एक बहन में सबसे छोटे हैं। और कुमार विश्वास की पत्नी का नाम मंजू शर्मा है।
कुमार विश्वास ने ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पिलखुआ में स्थित लाला गंगा सहाय विद्यालय से प्राप्त की। और उसके बाद राजपूताना रेजिमेंट इंटर कॉलेज से बारहवीं उत्तीर्ण किया, बताना चाहता हूँ कि उनके पिता जी उन्हें इंजीनियर बनाना चाहते थे लेकिन कुमार विश्वास जी का दिल इंजीनियर की पढाई में नहीं लगा और उन्होंने ने बीच में ही पढाई छोड़ दिया और अपने मन की सुनी
इसी के साथ उन्होंने ने साहित्य के क्षेत्र में आगे बढ़ने के संकल्प लिया और हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर किया, जिसमे उन्होंने स्वर्ण-पदक प्राप्त किया। "कौरवी लोकगीतों में लोकचेतना" विषय पर पीएचडी किया। इस शोध-कार्य को 2001 में पुरस्कृत भी किया गया।
करियर :-इन्होने अपना करियर राजस्थान में प्रवक्ता के रूप में 1994 में शुरू किया। और इसी के बाद चमकते सितारे की तरह खुले आसमान में चमकने लगे और इनके चाहने वालों की संख्या लगातार बढ़ने लगी इन्होने हजारो कवि-सम्मेलनों में कविता पाठ किया।
पुरस्कार:-डॉ॰ कुंवर बेचैन काव्य-सम्मान एवम पुरस्कार समिति द्वारा 1994 में "काव्य-कुमार पुरस्कार"
साहित्य भारती, उन्नाव द्वारा 2004 में 'डॉ॰ सुमन अलंकरण'
हिन्दी-उर्दू अवार्ड अकादमी द्वारा 2006 में "साहित्य-श्री"
डॉ॰ उर्मिलेश जन चेतना मंच द्वारा 2010 में "डॉ॰ उर्मिलेश गीत-श्री" सम्मान
Toh pyare dosto aap na jaana kumar vishwas ji ke bary mein kuch jankari keh lo ja fir baatein Jo humne aap ko internet ke madhyam se di hai aagye hum kumar vishwas shayari padhna suru karenge.
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Kumar Vishwas Shayari
कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है,मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है.मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है,ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है.
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पनाहों में जो आया हो, उस पर वार क्या करना जो दिल हारा हुआ हो, उस पे फिर से अधिकार क्या करना मोहब्बत का मज़ा तो, डूबने की कशमकश में है. जो हो मालूम गहरायी, तो दरिया पार क्या करना."
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मेरे जीने मरने में, तुम्हारा नाम आएगा. मैं सांस रोक लू फिर भी, यही इलज़ाम आएगा. हर एक धड़कन में जब तुम हो, तो फिर अपराध क्या मेरा, अगर राधा पुकारेंगी, तो घनश्याम आएगा."
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"कहीं पर जग लिए तुम बिन, कहीं पर सो लिए तुम बिन. भरी महफिल में भी अक्सर, अकेले हो लिए तुम बिन ये पिछले चंद वर्षों की कमाई साथ है अपने कभी तो हंस लिए तुम बिन, कभी तो रो लिए तुम बिन."
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"गिरेबां चाक करना क्या है, सीना और मुश्किल है. हर एक पल मुस्कुरा के, अश्क पीना और मुश्किल है. हमारी बदनसीबी ने, हमें इतना सीखाया है. किसी के इश्क में मरने से, जीना और मुश्किल है."
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" यह चादर सुख की मोल क्यू, सदा छोटी बनाता है. सीरा कोई भी थामो, दूसरा खुद छुट जाता है. तुम्हारे साथ था तो मैं, जमाने भर में रुसवा था. मगर अब तुम नहीं हो तो, ज़माना साथ गाता है. "
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"कोई कब तक महज सोचे, कोई कब तक महज गाए. ईलाही क्या ये मुमकिन है कि कुछ ऐसा भी हो जाऐ. मेरा मेहताब उसकी रात के आगोश मे पिघले मैँ उसकी नीँद मेँ जागूँ वो मुझमे घुल के सो जाऐ."
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kumar vishwas poems
"तुझ को गुरुर ए हुस्न है मुझ को सुरूर ए फ़न. दोनों को खुद पसंदगी की लत बुरी भी है. तुझ में छुपा के खुद को मैं रख दूँ मग़र मुझे. कुछ रख के भूल जाने की आदत बुरी भी है."
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"हर इक खोने में हर इक पाने में तेरी याद आती है नमक आँखों में घुल जाने में तेरी याद आती है. तेरी अमृत भरी लहरों को क्या मालूम गंगा माँ समंदर पार वीराने में तेरी याद आती है. "
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वो जो खुद में से कम निकलतें हैं, उनके ज़हनों में बम निकलतें हैं. आप में कौन-कौन रहता है ? हम में तो सिर्फ हम निकलते हैं."
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घर से निकला हूँ तो निकला है घर भी साथ मेरे देखना ये है कि मंज़िल पे कौन पहुँचेगा ? मेरी कश्ती में भँवर बाँध के दुनिया ख़ुश है दुनिया देखेगी कि साहिल पे कौन पहुँचेगा."
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सखियों संग रंगने की धमकी सुनकर क्या डर जाऊँगा? तेरी गली में क्या होगा ये मालूम है पर आऊँगा, भींग रही है काया सारी खजुराहो की मूरत सी, इस दर्शन का और प्रदर्शन मत करना, मर जाऊँगा."
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kumar vishwas poetry
"उम्मीदों का फटा पैरहन, रोज़-रोज़ सिलना पड़ता है, तुम से मिलने की कोशिश में, किस-किस से मिलना पड़ता है."
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" कोई खामोश है इतना, बहाने भूल आया हूँ किसी की इक तरनुम में, तराने भूल आया हूँ. मेरी अब राह मत तकना कभी ए आसमां वालो, मैं इक चिड़िया की आँखों में, उड़ाने भूल आया हूँ."
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"हिम्मत ए रौशनी बढ़ जाती है, हम चिरागों की इन हवाओं से, कोई तो जा के बता दे उस को, चैन बढता है बद्दुआओं से."
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"अजब है कायदा दुनिया ए इश्क का मौला फूल मुरझाये तब उस पर निखार आता है अजीब बात है तबियत ख़राब है जब से मुझ को तुम पे कुछ ज्यादा प्यार आता है. "
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"तुम्हारा ख़्वाब जैसे ग़म को अपनाने से डरता है हमारी आखँ का आँसूं , ख़ुशी पाने से डरता है अज़ब है लज़्ज़ते ग़म भी, जो मेरा दिल अभी कल तक़ तेरे जाने से डरता था वो अब आने से डरता है. "
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kumar vishwas ki kavita
एक पहाडे सा मेरी उँगलियों पे ठहरा है तेरी चुप्पी का सबब क्या है? इसे हल कर दे ये फ़क़त लफ्ज़ हैं तो रोक दे रस्ता इन का और अगर सच है तो फिर बात मुकम्मल कर दे.
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"बस्ती – बस्ती घोर उदासी, पर्वत – पर्वत सुनापन. मन हीरा बेमोल लुट गया, घिस -घिस रीता मन चंदन. इस धरती से उस अम्बर तक, दो ही चीज़ गजब की है. एक तो तेरा भोलापन है, एक मेरा दीवानापन."
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समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नहीं सकता यह आंसू प्यार का मोती है, इसको खो नहीं सकता. मेरी चाहत को दुल्हन तू, बना लेना मगर सुन ले. जो मेरा हो नहीं पाया, वो तेरा हो नहीं सकता."
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स्वयं से दूर हो तुम भी, स्वयं से दूर है हम भी बहुत मशहुर हो तुम भी, बहुत मशहुर है हम भी बड़े मगरूर हो तुम भी, बड़े मगरूर है हम भी अत: मजबुर हो तुम भी, अत : मजबुर है हम भी."
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हमारे शेर सुनकर भी जो खामोश इतना है, खुदा जाने गुरुर ए हुस्न में मदहोश कितना है. किसी प्याले से पूछा है सुराही ने सबब मय का, जो खुद बेहोश हो वो क्या बताये होश कितना है. "
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dr kumar vishwas
"ना पाने की खुशी है कुछ ना खोने का ही कुछ गम है. ये दौलत और शोहरत सिर्फ, कुछ ज़ख्मों का मरहम है. अजब सी कशमकश है, रोज़ जीने, रोज़ मरने में. मुक्कमल ज़िन्दगी तो है, मगर पूरी से कुछ कम है. "
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इस उड़ान पर अब शर्मिंदा में भी हूँ और तू भी है. आसमान से गिरा परिंदा, में भी हूँ और तू भी है. छुट गयी रस्ते में, जीने मरने की सारी कसमे. अपने-अपने हाल में जिंदा, में भी हूँ और तू भी है."
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तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है, समझता हूँ. तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है, समझता हूँ. तुम्हें मैं भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नहीं लेकिन. तुम्हीं को भूलना सबसे जरूरी है, समझता हूँ. "
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फ़लक पे भोर की दुल्हन यूँ सज के आई है, ये दिन उगा है या सूरज के घर सगाई है, अभी भी आते हैं आँसू मेरी कहानी में, कलम में शुक्र-ए- खुदा है कि रौशनाई है."
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क़लम को खून में खुद के डुबोता हूँ तो हंगामा, गिरेबां अपना आँसू में भिगोता हूँ तो हंगामा. नहीं मुझ पर भी जो खुद की ख़बर वो है ज़माने पर, मैं हँसता हूँ तो हंगामा, मैं रोता हूँ तो हंगामा.
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kumar vishwas twitter
Dr. Kumar Vishwas ji ka twitter account hai :- @DrKumarVishwas
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kavita kumar vishwas
भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा
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"वो जिसका तीर चुपके से जिगर के पार होता है वो कोई गैर क्या अपना ही रिश्तेदार होता है किसी से अपने दिल की बात तू कहना ना भूले से यहाँ ख़त भी थोड़ी देर में अखबार होता है."
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कोई पत्थर की मूरत है, किसी पत्थर में मूरत है लो हमने देख ली दुनिया, जो इतनी खुबसूरत है जमाना अपनी समझे पर, मुझे अपनी खबर यह है तुझे मेरी जरुरत है, मुझे तेरी जरुरत है
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हमें मालूम है दो दिल जुदाई सह नहीं सकते मगर रस्मे-वफ़ा ये है कि ये भी कह नहीं सकते जरा कुछ देर तुम उन साहिलों कि चीख सुन भर लो जो लहरों में तो डूबे हैं, मगर संग बह नहीं सकते."
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kumar vishwas wife
उसी की तरहा मुझे सारा ज़माना चाहे वो मेरा होने से ज्यादा मुझे पाना चाहे मेरी पलकों से फिसल जाता है चेहरा तेरा ये मुसाफिर तो कोई ठिकाना चाहे. "
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बदलने को तो इन आखोँ के मंज़र कम नहीं बदले, तुम्हारी याद के मौसम हमारे ग़म नहीं बदले, तुम अगले जन्म में हम से मिलोगी तब तो मानोगी, ज़माने और सदी की इस बदल में हम नहीं बदले
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जब आता है जीवन में खयालातों का हंगामा
हास्य बातो या जज़्बातो मुलाकातों का हंगामा
जवानी के क़यामत दौर में ये सोचते है सब
ये हंगामे की राते है या है रातो का हंगामा
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kumar vishwas kavi sammelan
हर एक नदिया के होंठों पे समंदर का तराना है,
यहाँ फरहाद के आगे सदा कोई बहाना है !
वही बातें पुरानी थीं, वही किस्सा पुराना है,
तुम्हारे और मेरे बिच में फिर से जमाना है…!!
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मेहफिल-महफ़िल मुस्काना तो पड़ता है,
खुद ही खुद को समझाना तो पड़ता है
उनकी आँखों से होकर दिल जाना.
रस्ते में ये मैखाना तो पड़ता है..
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गाँव-गाँव गाता फिरता हूँ, खुद में मगर बिन गाय हूँ,
तुमने बाँध लिया होता तो खुद में सिमट गया होता मैं,
तुमने छोड़ दिया है तो कितनी दूर निकल आया हूँ मैं…!!
कट न पायी किसी से चाल मेरी, लोग देने लगे मिसाल मेरी…!
मेरे जुम्लूं से काम लेते हैं वो, बंद है जिनसे बोलचाल मेरी…!!
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कुमार विश्वास की कविता
आँखें की छत पे टहलते रहे काले साये,
कोई पहले में उजाले भरने नहीं आया…!
कितनी दिवाली गयी, कितने दशहरे बीते,
इन मुंडेरों पर कोई दीप न धरने आया…!
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हमें बेहोश कर साकी , पिला भी कुछ नहीं हमको
कर्म भी कुछ नहीं हमको , सिला भी कुछ नहीं हमको
मोहब्बत ने दे दिआ है सब , मोहब्बत ने ले लिया है सब
मिला कुछ भी नहीं हमको , गिला भी कुछ नहीं हमको !!
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कितनी दुनिया है मुझे ज़िन्दगी देने वाली
और एक ख्वाब है तेरा की जो मर जाता है
खुद को तरतीब से जोड़ूँ तो कहा से जोड़ूँ
मेरी मिट्टी में जो तू है की बिखर जाता है
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कलम को खून में खुद के डुबोता हूँ तो हंगामा
गिरेबां अपना आंसू में भिगोता हूँ तो हंगामा
नही मुझ पर भी जो खुद की खबर वो है जमाने पर
मैं हंसता हूँ तो हंगामा, मैं रोता हूँ तो हंगामा.
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उम्मीदों का फटा पैरहन,
रोज़-रोज़ सिलना पड़ता है,
तुम से मिलने की कोशिश में,
किस-किस से मिलना पड़ता है
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कुमार विश्वास की कविताएं
चंद चेहरे लगेंगे अपने से ,
खुद को पर बेक़रार मत करना ,
आख़िरश दिल्लगी लगी दिल पर?
हम न कहते थे प्यार मत करना…!!
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वो जो खुद में से कम निकलतें हैं
उनके ज़हनों में बम निकलतें हैं
आप में कौन-कौन रहता है
हम में तो सिर्फ हम निकलते हैं।
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हमने दुःख के महासिंधु से सुख का मोती बीना है
और उदासी के पंजों से हँसने का सुख छीना है
मान और सम्मान हमें ये याद दिलाते है पल पल
भीतर भीतर मरना है पर बाहर बाहर जीना है।
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स्वंय से दूर हो तुम भी स्वंय से दूर है हम भी
बहुत मशहूर हो तुम भी बहुत मशहूर है हम भी
बड़े मगरूर हो तुम भी बड़े मगरूर है हम भी
अतः मजबूर हो तुम भी अतः मजबूर है हम भी
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कुमार विश्वास शायरी हिंदी
ये दिल बर्बाद करके सो में क्यों आबाद रहते हो
कोई कल कह रहा था तुम अल्लाहाबाद रहते हो
ये कैसी शोहरतें मुझको अता कर दी मेरे मौला
मैं सभ कुछ भूल जाता हूँ मगर तुम याद रहते हो !!
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सदा तो धूप के हाथों में ही परचम नहीं होता
खुशी के घर में भी बोलों कभी क्या गम नहीं होता
फ़क़त इक आदमी के वास्तें जग छोड़ने वालो
फ़क़त उस आदमी से ये ज़माना कम नहीं होता।
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फिर मेरी याद आ रही होगी
फिर वो दीपक बुझा रही होगी
फिर मिरे फेसबुक पे आ कर वो ख़ुद को बैनर बना रही होगी
अपने बेटे का चूम कर माथा मुझ को टीका लगा रही होगी
फिर उसी ने उसे छुआ होगा
फिर उसी से निभा रही होगी जिस्म चादर सा बिछ गया होगा
रूह सिलवट हटा रही होगी
फिर से इक रात कट गई होगी
फिर से इक रात आ रही होगी||
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सब अपने दिल के राजा है, सबकी कोई रानी है
भले प्रकाशित हो न हो पर सबकी कोई कहानी है
बहुत सरल है किसने कितना दर्द सहा
जिसकी जितनी आँख हँसे है, उतनी पीर पुराणी है
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कुमार विश्वास शायरी हिंदी
हिम्मत ऐ दुआ बढ़ जाती है
हम चिरागों की इन हवाओ से
कोई तो जाके बता दे उसको
दर्द बढ़ता है अब दुआओं से
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घर भर चाहे छोड़े
सूरज भी मुँह मोड़े
विदुर रहे मौन, छिने राज्य, स्वर्णरथ, घोड़े
माँ का बस प्यार, सार गीता का साथ रहे
पंचतत्व सौ पर है भारी, बतलाना है
जीवन का राजसूय यज्ञ फिर कराना है
पतझर का मतलब है, फिर बसंत आना है
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नज़र में शोखिया लब पर मुहब्बत का तराना है
मेरी उम्मीद की जद़ में अभी सारा जमाना है
कई जीते है दिल के देश पर मालूम है मुझकों
सिकन्दर हूं मुझे इक रोज खाली हाथ जाना है।
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मैं अपने गीतों और ग़ज़लों से उसे पेगाम करता हु
उसकी दी हुई दौलत उसी के नाम करता हूँ
हवा का काम है चलना, दिए का काम है जलना
वो अपना काम करती है, में अपना काम करता हूँ
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डॉ कुमार विश्वास
राजवंश रूठे तो
राजमुकुट टूटे तो
सीतापति-राघव से राजमहल छूटे तो
आशा मत हार, पार सागर के एक बार
पत्थर में प्राण फूँक, सेतु फिर बनाना है
पतझर का मतलब है फिर बसंत आना है
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मेरा जो भी तर्जुबा है, तुम्हे बतला रहा हूँ मैं
कोई लब छु गया था तब, की अब तक गा रहा हूँ मैं
बिछुड़ के तुम से अब कैसे, जिया जाये बिना तडपे
जो मैं खुद ही नहीं समझा, वही समझा रहा हु मैं
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मोहब्बत एक अहसासों की, पावन सी कहानी है,
कभी कबिरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है,
यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं,
जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है।
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कुमार विश्वास की प्रेमिका का नाम
भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्त का
मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा
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कोई खामोश है इतना, बहाने भूल आया हूँ
किसी की इक तरनुम में, तराने भूल आया हूँ
मेरी अब राह मत तकना कभी ए आसमां वालो
मैं इक चिड़िया की आँखों में, उड़ाने भूल आया हूँ
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गिरेबान चेक करना क्या है सीना और मुश्किल है,
हर एक पल मुस्कुराकर अश्क पीना और मुश्किल है,
हमारी बदनसीबी ने हमें बस इतना सिखाया है,
किसी के इश्क़ में मरने से जीना और मुश्किल है.
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कुमार विश्वास कविता
उन की ख़ैर-ओ-ख़बर नहीं मिलती
हम को ही ख़ास कर नहीं मिलती
शाएरी को नज़र नहीं मिलती
मुझ को तू ही अगर नहीं मिलती
रूह में दिल में जिस्म में दुनिया ढूँढता हूँ
मगर नहीं मिलती
लोग कहते हैं रूह बिकती है
मैं जिधर हूँ उधर नहीं मिलती|
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तुम्ही पे मरता है ये दिल अदावत क्यों नहीं करता
कई जन्मो से बंदी है बगावत क्यों नहीं करता..
कभी तुमसे थी जो वो ही शिकायत हे ज़माने से
मेरी तारीफ़ करता है मोहब्बत क्यों नहीं करता..
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मिले हर जख्म को मुस्कान को सीना नहीं आया
अमरता चाहते थे पर ज़हर पीना नहीं आया
तुम्हारी और मेरी दस्ता में फर्क इतना है
मुझे मरना नहीं आया तुम्हे जीना नहीं आया
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मेरा अपना तजुर्बा है तुम्हे बतला रहा हूँ मैं
कोई लब छू गया था तब के अब तक गा रहा हु मैं
बिछुड़ के तुम से अब कैसे जिया जाए बिना तड़पे
जो में खुद हे नहीं समझा वही समझा रहा हु मैं.
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कुमार विश्वास की गजलें
सब अपने दिल के राजा है, सबकी कोई रानी है
भले प्रकाशित हो न हो पर सबकी कोई कहानी है
बहुत सरल है किसने कितना दर्द सहा
जिसकी जितनी आँख हँसे है, उतनी पीर पुराणी है
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फिर मेरी याद आ रही होगी
फिर वो दीपक बुझा रही होगी
फिर मिरे फेसबुक पे आ कर वो ख़ुद को बैनर बना रही होगी
अपने बेटे का चूम कर माथा मुझ को टीका लगा रही होगी
फिर उसी ने उसे छुआ होगा
फिर उसी से निभा रही होगी जिस्म चादर सा बिछ गया होगा
रूह सिलवट हटा रही होगी
फिर से इक रात कट गई होगी
फिर से इक रात आ रही होगी||
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पनाहों में जो आया हो तो उस पर वार क्या करना
जो दिल हारा हुआ हो उस पे फिर अधिकार क्या करना
मुहब्बत का मजा तो डूबने की कशमकश में है
हो ग़र मालूम गहराई तो दरिया पार क्या करना।
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दोस्ती पर कविता कुमार विश्वास
सदा तो धूप के हाथों में ही परचम नहीं होता
खुशी के घर में भी बोलों कभी क्या गम नहीं होता
फ़क़त इक आदमी के वास्तें जग छोड़ने वालो
फ़क़त उस आदमी से ये ज़माना कम नहीं होता।
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स्वंय से दूर हो तुम भी स्वंय से दूर है हम भी
बहुत मशहूर हो तुम भी बहुत मशहूर है हम भी
बड़े मगरूर हो तुम भी बड़े मगरूर है हम भी
अतः मजबूर हो तुम भी अतः मजबूर है हम भी
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नज़र में शोखिया लब पर मुहब्बत का तराना है
मेरी उम्मीद की जद़ में अभी सारा जमाना है
कई जीते है दिल के देश पर मालूम है मुझकों
सिकन्दर हूं मुझे इक रोज खाली हाथ जाना है।
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कोई मंजिल नहीं जंचती, सफर अच्छा नहीं लगता
अगर घर लौट भी आऊ तो घर अच्छा नहीं लगता
करूं कुछ भी मैं अब दुनिया को सब अच्छा ही लगता है
मुझे कुछ भी तुम्हारे बिन मगर अच्छा नहीं लगता।
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पनाहों में जो आया हो तो उस पर वार क्या करना
जो दिल हारा हुआ हो उस पे फिर अधिकार क्या करना
मुहब्बत का मजा तो डूबने की कशमकश में है
हो ग़र मालूम गहराई तो दरिया पार क्या करना।
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तुम्ही पे मरता है ये दिल अदावत क्यों नहीं करता
कई जन्मो से बंदी है बगावत क्यों नहीं करता..
कभी तुमसे थी जो वो ही शिकायत हे ज़माने से
मेरी तारीफ़ करता है मोहब्बत क्यों नहीं करता..
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मिले हर जख्म को मुस्कान को सीना नहीं आया
अमरता चाहते थे पर ज़हर पीना नहीं आया
तुम्हारी और मेरी दस्ता में फर्क इतना है
मुझे मरना नहीं आया तुम्हे जीना नहीं आया
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कुमार विश्वास शायरी
मेरा अपना तजुर्बा है तुम्हे बतला रहा हूँ मैं
कोई लब छू गया था तब के अब तक गा रहा हु मैं
बिछुड़ के तुम से अब कैसे जिया जाए बिना तड़पे
जो में खुद हे नहीं समझा वही समझा रहा हु मैं..
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मै तेरा ख्वाब जी लून पर लाचारी है
मेरा गुरूर मेरी ख्वाहिसों पे भरी है
सुबह के सुर्ख उजालों से तेरी मांग से
मेरे सामने तो ये श्याह रात सारी है
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सदा तो धूप के हाथों में ही परचम नहीं होता
खुशी के घर में भी बोलों कभी क्या गम नहीं होता
फ़क़त इक आदमी के वास्तें जग छोड़ने वालो
फ़क़त उस आदमी से ये ज़माना कम नहीं होता।
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घर से निकला हूँ तो निकला है घर भी साथ मेरे
देखना ये है कि मंज़िल पे कौन पहुँचेगा
मेरी कश्ती में भँवर बाँध के दुनिया ख़ुश है
दुनिया देखेगी कि साहिल पे कौन पहुँचेगा।
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हो के क़दमों पे निछावर फूल ने बुत से कहा
ख़ाक में मिल कर भी मैं ख़ुशबू बचा ले जाऊँगा
पगली सी एक लड़की से शहर ये ख़फ़ा है
वो चाहती है पलकों पे आसमान रखना
केवल फ़क़ीरों को है ये कामयाबी हासिल
मस्ती से जीना और ख़ुश सारा जहान रखना
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ऋषि कश्यप की तपस्या ने तपाया है तुझे ऋषि अगस्त्य ने हमभार बनाया है तुझे कवि ललदत् ने राबिया ने भी गाया है तुझे बाबा बर्फ़ानी ने दरबार बनाया है तुझे।
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एक पहाडे सा मेरी उँगलियों पे ठहरा है तेरी चुप्पी का सबब क्या है? इसे हल कर दे ये फ़क़त लफ्ज़ हैं तो रोक दे रस्ता इन का और अगर सच है तो फिर बात मुकम्मल कर दे।
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Final Words
Yeh thi kumar vishwas ji ki shayari in Hindi mujhe umeed hai aapko hamari traf se pesh ki gayi Shayari pasnd ayi hogi aapki jankari ke liye bataa de yeh kumar vishwas ji ke bary mein aapko jo v information de gayi hai vo sabi information humne internet se lee hai.
Apna keemti time dene ke liye aapka bhut bhut sukriya....
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